आज का अनुभव

बाजार में नया एल ई डी बल्ब लाना था और उसकी बनावट पर विचार चल रहा था। काफी सोच विचार कर हमने बल्ब के कई नमूने बनाये और उन्हें शुरुवाती जाँच कर लागतार चलने के लिए छोड़ दिया।
वे २-३ दिन तो ठीक चलते रहे पर फिर उनमें से रोजाना १-२ खराब होने लग गए।
मैं उदास हो गया , की अब क्या करूँ। काफी परिक्षण के बाद उसे बनाया था और काफी मेहनत लगी थी। मगर शायद यह कुछ नया सीखने का अवसर था, तो पीछे क्यों रहना।
मैंने भी सभी खराब बल्बों को देखना शुरू किया।क्या क्या वहज हो सकती हैं उसे लिखा।
सभी लिखे कारणों को सिद्ध करने का प्रयास किया , तो कुछ ठीक रहे और कुछ बे बुनियाद।
उस बल्ब के चालक के सभी अव्यय देख लिए, कोई भी खराब नहीं था।
३ दिन हो गए कोई उत्तर नही मिला।
फिर अचानक ऐसा हुआ की मेरे चालक का एक अव्यय गम हो गया सो मैंने नया अव्यय लगाया। और उसके लगाते ही वह बल्ब चलने लगा। यह एक संधारित्र था जो खराब हो चुका था पर नापने पर मान सही बता रहा था।
जब बाकी बल्बों में देखा तो यही परेशानी मिली और संधारित्र बदलते ही सभी बल्ब चलने लगा।
संधारित्र का खराब होने का कारण पता लगाया तो उच्च ताप और उच्च विभव दबाव मिला। अब मैंने संधारित्र की विभव मान बदल के लगाया तो बल्ब ठीक चल रहे है ।
संधारित्र का मान पहले भी ठीक था पर उच्च ताप होने पर उसकी विभव सहन करने की छमता कम हो गयी और वह खराब हो गया।

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